क़र्ज़ अदायगी
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तुमने कभी स्पष्ट कहा नहीं
शायद संकोच हो
या फिर सवालों से घिर जाने का भय
जो मेरी बेदख़ली पर तुमसे किए जाएँगे
जो इतनी नज़दीक वो ग़ैर कैसे?
पर हर बार तुम्हारी बेरुखी
इशारा करती है कि
ख़ुद अपनी राह बदल लूँ
तुम्हारे लिए मुश्किल न बनूँ
अगर कभी मिलूँ भी तो उस दोस्त की तरह
जिससे महज़ फ़र्ज़ अदायगी-सा वास्ता हो
या कोई ऐसी परिचित
जिससे सिर्फ़ दुआ सलाम का नाता हो।
जानती हूँ
दूर जाना ही होगा मुझे
क्योंकि यही मेरी क़र्ज़ अदायगी है
थोड़े पल और कुछ सपने
उधार दिए थे तुमने
दान नहीं!
- जेन्नी शबनम (10. 10. 2011)
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तुमने कभी स्पष्ट कहा नहीं
शायद संकोच हो
या फिर सवालों से घिर जाने का भय
जो मेरी बेदख़ली पर तुमसे किए जाएँगे
जो इतनी नज़दीक वो ग़ैर कैसे?
पर हर बार तुम्हारी बेरुखी
इशारा करती है कि
ख़ुद अपनी राह बदल लूँ
तुम्हारे लिए मुश्किल न बनूँ
अगर कभी मिलूँ भी तो उस दोस्त की तरह
जिससे महज़ फ़र्ज़ अदायगी-सा वास्ता हो
या कोई ऐसी परिचित
जिससे सिर्फ़ दुआ सलाम का नाता हो।
जानती हूँ
दूर जाना ही होगा मुझे
क्योंकि यही मेरी क़र्ज़ अदायगी है
थोड़े पल और कुछ सपने
उधार दिए थे तुमने
दान नहीं!
- जेन्नी शबनम (10. 10. 2011)
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19 टिप्पणियां:
दूर जाना हीं होगा मुझे
क्योंकि यही मेरी क़र्ज़ अदाएगी है,
थोड़े पल और कुछ सपने
उधार दिए थे तुमने
दान नहीं !
.....बहुत सुन्दर संवेदनशील अभिव्यक्ति..रचना के भाव अंतस को छू जाते हैं..
जानती हूँ
दूर जाना हीं होगा मुझे
क्योंकि यही मेरी क़र्ज़ अदाएगी है,
थोड़े पल और कुछ सपने
उधार दिए थे तुमने
दान नहीं !...aur udhaar rakhna meri niyti nahin
सशक्त अभिवयक्ति.....
thode pal aur kuch sapne udhaar diye the tumne....bhaavpoorn panktiyan.bahut umda rachna.
अगर कभी मिलूँ भी तो उस दोस्त की तरह
जिससे महज़ फ़र्ज़ अदायगी सा वास्ता हो
या कोई ऐसी परिचित
जिससे सिर्फ दुआ सलाम का नाता हो !
bahut khub
jai hind jai bharat
तुमने कभी स्पष्ट कहा नहीं
शायद संकोच हो
या फिर
सवालों से घिर जाने का भय
जो मेरी बेदख़ली पर तुमसे किये जायेंगे,
जो इतनी नज़दीक
ग़ैर कैसे ?
पर हर बार तुम्हारी बेरुखी
इशारा करती है कि
ख़ुद अपनी राह बदल लूँ
तुम्हारे लिए मुश्किल न बनूँ,
सही कहा...
कई बार सामने वाला
खुद को बचाने के लिए
यही हथियार अख्तियार करता है...!!
बहुत सुंदर,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
क्योंकि यही मेरी क़र्ज़ अदाएगी है,
थोड़े पल और कुछ सपने
उधार दिए थे तुमने
दान नहीं !
bahut bhawpoorn likhi hain......
बहुत उम्दा!
बहुत बढ़िया |
बधाई ||
तुमने कभी स्पष्ट कहा नहीं
शायद संकोच हो
या फिर
सवालों से घिर जाने का भय
जो मेरी बेदख़ली पर तुमसे किये जायेंगे,
जो इतनी नज़दीक
ग़ैर कैसे ?
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थोड़े पल और कुछ सपने
उधार दिए थे तुमने
दान नहीं !
इतना ही काफी है.....!!
बेहद खूबसूरत........
'थोड़े पल और कुछ सपने
उधार दिए थे तुमने
दान नहीं !'
............भावपूर्ण , सुन्दर प्रस्तुति
एक रिश्ते का मार्मिक चित्रण ...सुंदर रचना
♥
आदरणीया जेन्नी शबनम जी
बहुत अच्छा लिखा है -
थोड़े पल और कुछ सपने
उधार दिए थे तुमने
दान नहीं !
आत्म-सम्मान की रक्षा के लिए प्रेरित करती प्रभावशाली रचना हेतु साधुवाद !
त्यौंहारों के इस सीजन सहित
आपको सपरिवार
दीपावली की अग्रिम बधाइयां !
शुभकामनाएं !
मंगलकामनाएं !
-राजेन्द्र स्वर्णकार
दूर जाना हीं होगा मुझे
क्योंकि यही मेरी क़र्ज़ अदाएगी है,
थोड़े पल और कुछ सपने
उधार दिए थे तुमने...
अपने आत्मीय से बिचादने के भाव की बेहद सशक्त और भावुक अभिव्यक्ति.
दूर जाना हीं होगा मुझे
क्योंकि यही मेरी क़र्ज़ अदाएगी है,
थोड़े पल और कुछ सपने
उधार दिए थे तुमने...
अपने आत्मीय से बिचादने के भाव की बेहद सशक्त और भावुक अभिव्यक्ति.
अगर कभी मिलूँ भी तो उस दोस्त की तरह
जिससे महज़ फ़र्ज़ अदायगी सा वास्ता हो
या कोई ऐसी परिचित
जिससे सिर्फ दुआ सलाम का नाता हो !
-इन पंक्तियों में निहित विवशता बहुत व्यथित करने वाली है । जिन रिश्तों को व्यक्ति बहुत नज़दीक मानता है , उनकी निरर्थकता इन पंक्तियों में ध्वनित होती है।
थोड़े पल और कुछ सपने
उधार दिए थे तुमने
दान नहीं !
बहुत सुन्दर संवेदनशील अभिव्यक्ति.
दूर जाना हीं होगा मुझे
क्योंकि यही मेरी क़र्ज़ अदाएगी है,
थोड़े पल और कुछ सपने
उधार दिए थे तुमने
दान नहीं !
आपकी प्रस्तुति की सादगी और
सुन्दर भावों की अदायगी की प्रशंसा
करने के लिए शब्द नही हैं मेरे पास.
आपको बहुत बहुत बधाई और
हार्दिक शुभकामनाएँ.
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