शुक्रवार, 10 फ़रवरी 2012

321. नन्हे हाथों में

नन्हे हाथों में

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नामुमकिन हो गया
उस सफ़र पर जाना
जहाँ जाने के लिए
बारहा कोशिश करती रही,
मर्ज़ी नहीं थी
न चाह
पर यहाँ रुकना भी बेमानी लगता रहा,
ठीक उसी वक़्त
जब काफ़िला गुज़रा
और मैंने कदम बढ़ा दिए
किसी ने मुझे रोक लिया,
पलटकर देखा
दो नन्हे हाथ
आँचल थामे हुए थे,
रिश्तों की दुहाई
जीवन पलट गया
मेरे साथ उजाले की किरण न थी
पर उम्मीद की किरण तो थी
उन नन्हे हाथों में
। 

- जेन्नी शबनम (नवम्बर 1995)
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11 टिप्‍पणियां:

Pallavi saxena ने कहा…

जब भले ही हमारे पास उजाले की कोई किरण न हो कोई आस न हो मगर तब भी यह नन्हे सुमन अपनी उम्मीदों की किरण से हमारे जीवन को जीने की वजह दे ही देते हैं।... खूबसूरत रचना।

vidya ने कहा…

बहुत सुन्दर...
नन्हे हाथ...
इन्हें कोई कैसे टाले..कैसे ठुकराए..

रश्मि प्रभा... ने कहा…

नन्हें हाथों की उम्मीद साँसें बन चलती जाती हैं ...

kshama ने कहा…

Bahut,bahut sundar!

***Punam*** ने कहा…

"मेरे साथ
उजाले की किरण न थी
पर उम्मीद की किरण तो थी
उन नन्हे हाथों में !"




जिंदगी के कई निर्णय ऐन मौके पर ऐसे ही बदल दिए जाते हैं....
और ये बदलाव जीवन में possitive दृष्टिकोण ही लाते है....
बस,धैर्य चाहिए उसी क्षण रुकने का.....
जब कि पाँव बढ़ने वाले हों...
अब,रोकने वाले कोई नन्हें से हाथ हो सकते हैं...
या फिर आपका आपना विचलित मन.....!!

vandana gupta ने कहा…

बहुत सुन्दर भाव समेटे हैं।

Nidhi ने कहा…

एक भी हो तो भी ..उम्मीद की किरण तो है...

Gyan Darpan ने कहा…

बहुत बढ़िया रचना

Smart Indian ने कहा…

सही कहा। ये नन्हे हाथ ही जीवन की दिशा बदल देते हैं।

amrendra "amar" ने कहा…

bahut sunder, bahut hi bhavpurn rachna .........

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) ने कहा…

नन्हे हाथों में आशा की किरणें , वाह क्या सुंदर व सकारात्मक भाव हैं, बधाई...