गुरुवार, 18 जुलाई 2013

412. जादूगर

जादूगर

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ओ जादूगर!
तुम्हारा सबसे ख़ास
मेरा प्रिय जादू दिखाओ न!
जानती हूँ 
तुम्हारी काया जीर्ण हो चुकी है 
और अब मैं 
ज़िन्दगी और जादू को समझने लगी हूँ 
फिर भी मेरा मन है 
एक बार और तुम मेरे जादूगर बन जाओ 
और मैं तुम्हारे जादू में 
अपना रोना भूल 
एक आख़िरी बार खिल जाऊँ।
तुम्हें याद है 
जब तुम मेरे बालों से टॉफ़ी निकालकर  
मेरी हथेली पर रख देते थे 
मैं झट से खा लेती थी 
कहीं जादू की टॉफ़ी ग़ायब न हो जाए
कभी तुम मेरी जेब से  
कुछ सिक्के निकाल देते थे 
मैं हत्प्रभ 
झट मुट्ठी बंद कर लेती थी 
कहीं जादू के सिक्के ग़ायब न हो जाए 
और मैं ढेर सारे गुब्बारे न खरीद पाऊँ।
मेरे मन के ख़िलाफ़
जब भी कोई बात हो 
मैं रोने लगती और तुम पुचकारते हुए 
मेरी आँखें बंदकर जादू करते 
जाने क्या-क्या बोलते 
सुनकर हँसी आ ही जाती थी 
और मैं खिसियाकर तुम्हें मुक्के मारने लगती
तुम कहते- 
बिल्ली झपट्टा मारी 
बिल्ली झपट्टा मारी 
मैं कहती-
तुम चूहा हो 
तुम कहते-
तुम बिल्ली हो 
एक घमासान, फिर तुम्हारा जादू 
वही टॉफ़ी, वही सिक्के।
जानती हूँ 
तुम्हारा जादू, सिर्फ़ मेरे लिए था 
तुम सिर्फ़ मेरे जादूगर थे 
मेरी हँसी मेरी ख़ुशी 
यही तो था तुम्हारा जादू।
ओ जादूगर!
एक आख़िरी जादू दिखाओ न! 

- जेन्नी शबनम (18. 7. 2013)
(पिता की पुण्यतिथि)
____________________ 

22 टिप्‍पणियां:

अनुपमा पाठक ने कहा…

पिता की स्मृति को समर्पित बेहद भावुक कर देने वाली अभिव्यक्ति...!

जादू सी... जादूगर की स्मृति को पूर्णता से रेखांकित कर गयी!

डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति ने कहा…

बहुत प्यारी कविता ,... सच ही लिखा है आपने पिता एक जादूगर ही तो है ओने बच्चों के लिए तमाम खुशियों का छुग्गा इधर उधर से एकत्र कर लाते है... और वह बड़े हो जाते है तो कमजोर पढ़ जाते है.. आप की यह कविता बच्चों को अपने माँ पिता के प्रति स्नेह भाव रखना बताएगी ..

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

काश के कोई जादू हो जाए और जादूगर सामने आ जाए....
काश....
मुझे भी अपने पापा की याद आ गयी :-(

सादर
अनु

Maheshwari kaneri ने कहा…

भाव पूर्ण सुन्दर प्रस्तुति..आभार

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

यादों का बहुत उम्दा,सुंदर सृजन,,,वाह !!!
RECENT POST : अभी भी आशा है,

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

पिता सच में ही जादूगर से कम नहीं होता .... सुंदर प्रस्तुति

PRAN SHARMA ने कहा…

PITA KEE SMRITI MEIN LIKHEE EK
HRIDAYSPARSHEE AUR YAADGAR KAVITA KE LIYE AAPKO BADHAAEE .

Anita Lalit (अनिता ललित ) ने कहा…

बहुत ही प्यारी रचना.... दिल भर आया...!
~पिता का स्नेह
अथाह सागर जैसा...
पुत्री के लिए....~

हर पिता को नमन!

~सादर!!!

Saras ने कहा…

बहोत खूबसूरत...दिल के बहोत करीब....

Naveen Mani Tripathi ने कहा…

तुम्हारा जादू
सिर्फ मेरे लिए था
तुम सिर्फ मेरे जादूगर थे
मेरी हँसी मेरी ख़ुशी
यही तो था तुम्हारा जादू !
ओ जादूगर,

lajbab prstuti ....bahut hi sundar rachana ...aabhar .

महेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा…

बहुत सुंदर रचना
कभी कभी ही ऐसी रचनाएं और विचार पढ़ने को मिलती है।
बढिया



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MEDIA : अब तो हद हो गई !
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Ranjana verma ने कहा…

पिता की स्मृति बहुत ही भावुककर देने वाली रचना.

kshama ने कहा…

जानती हूँ
तुम्हारा जादू
सिर्फ मेरे लिए था
तुम सिर्फ मेरे जादूगर थे
मेरी हँसी मेरी ख़ुशी
यही तो था तुम्हारा जादू !
ओ जादूगर,
एक आखिरी जादू दिखाओ न !
Kaash! Zindagee aisa jadu dikhala sake!Bada bhavuk kar diya aapne!
Mere blogpe comment ke liye shukriya...Beti ma banna nahi chahti to wo maa banneka ehsaas uske sukh dukh kahan jaan payegi? Uske byah ko to 10 saal ho gaye!

Ramakant Singh ने कहा…

बेहतरीन यादों संग ज़िन्दगी से शिकायत भी और अनुरोध खुबसूरत *******

Neeraj Neer ने कहा…

वाह बहुत उम्दा एवं भावपूर्ण अभिव्यक्ति .. आपकी इस रचना के लिंक की प्रविष्टी सोमवार (22.07.2013) को ब्लॉग प्रसारण पर की जाएगी. कृपया पधारें .

सहज साहित्य ने कहा…

इस कविता में से जो भोलापन झाँक रहा है , वह जेन्नी शबनम की अभिव्यक्ति का जादू है कि किसी छोटे से प्रसंग से लिपटी स्मृतियाँ पाठक को भिगो सकती हैं । मैं जब जेन्नी जी की कविता पढ़ता हूँ तो हर बात का नयापन भाव-विमुग्ध कर देता है। जादूगर के रूप में पिता का वात्सल्य पूरी कविता का प्राण है। बहुत बधाई !

Udan Tashtari ने कहा…

ओ जादूगर,
एक आखिरी जादू दिखाओ न !


-मार्मिक...बहुत उम्दा

Jyoti khare ने कहा…

यह रचना नहीं मन के अंदर की सच्ची अनकही और सार्थक अनुभूति है
ऐसी अनुभूति कभी कभार पढ़ने मिलती है----
अदभुत
सादर

वाणी गीत ने कहा…

वाकई पिता जादूगर ही होते हैं !
उनकी स्मृतियों को नमन !

Aparna Bose ने कहा…

और अब मैं
ज़िन्दगी और जादू को समझने लगी हूँ
फिर भी...
मेरा मन है
एक बार और
तुम मेरे जादूगर बन जाओ
और मैं
तुम्हारे जादू में
अपना रोना भूल
एक आखिरी बार खिल जाऊँ ।.....marmsparshi abhivyakti.... excellent

Dr. Shorya ने कहा…

बहुत सुंदर,

यहाँ भी पधारे
गुरु को समर्पित
http://shoryamalik.blogspot.in/2013/07/blog-post_22.html

Dayanand Arya ने कहा…

भावनात्मक प्रस्तुती