लम्हों का सफ़र
मन की अभिव्यक्ति का सफ़र
गुरुवार, 20 मार्च 2025
791. गौरैया (9 हाइकु)
गुरुवार, 13 मार्च 2025
790. होली (होली पर 20 हाइकु)
होली
(होली पर 20 हाइकु)
1.
भाँग पीकर
पुआ-पूड़ी खाकर
होली अघाई।
2.
लगाकर गुलाल
ख़ूब लजाई।
3.
धर्म व जाति
भेद नहीं करती
भोली है होली।
4.
होलिका जली
जलकर दिखाई
कर्म का पथ।
5.
दे बलिदान
होलिका ने सिखाया
सत्य का ज्ञान।
6.
देकर प्राण
होलिका ने बचाया
धर्म का मान।
7.
पगली हवा
रंग उड़ाके बोली-
गाओ फगुआ।
8.
उड़ाओ रंग
फगुआ को भाता है
गुलाबी रंग।
9.
रँगी बावरी
साँवरे के रंग में
खेलती होली।
उड़ा गुलाल
पिया की प्यारी
हुई है लाल।
11.
भेद व द्वेष
मन से है मिटाती
होली सन्मार्गी।
12.
आकर खेलो
अतीत को भूलके
रंगीली होली।
13.
अब तो भूलो
ग़लतफ़हमियाँ
होली खेलो न!
14.
फगुआ के फाग से
मन है बँधा।
15.
रंग लेकर
चली हवा बसन्ती
धरा रंगती।
16.
सब भौजाई
अपनी या पराई
होली है भाई।
17.
हँसी-ठिठोली
मोहल्ले की भौजाई
18.
लगाओ रंग
करो ख़ूब धमाल
होली है यार।
शनिवार, 8 मार्च 2025
789. एक सवाल
बार-बार भोगती रही
अपमान का घूँट पीती रही
और तुम सभी नज़रें झुकाए
तुम सभी के पुरुष होने पर
ऐसे वचन पर
मेरी जगह तुम्हारी पुत्री होती तो?
क्या फिर भी उसे दाँव पर लगा देते?
क्या उसे भी पाँच पुरुषों में बाँट देते?
भरी सभा में निर्वस्त्र होने देते?
मेरी हँसी नाजाएज़ सही
पर क्या ये जाएज़ है?
सोमवार, 10 फ़रवरी 2025
788. प्रवासी पूत (20 हाइकु)
मन हुआ बेकल
2.
रोज़ी-रोटी की खोज
प्रवासी बेटा।
विदेश की धरती
4.
दुःखी माँ-बाप।
5.
छूटा है देश
ज़िम्मेदारी का दंश
अकेला बच्चा।
6.
अकेला बच्चा
माँ-बाप निस्सहाय
प्रवासी पूत।
7.
अकेला बेटा
विदेश की धरती,
दुःख है भारी।
8.
चढ़ गया सूली पे,
बेरोज़गारी।
9.
बेटा है देशी
रोज़गार की खोज
बना विदेशी।
10.
काँटों से घिरा
प्रवासी बना बच्चा,
फूल भेजता।
11.
देश की याद
हर रोज़ सताती
क्या करे बेटा?
12.
विदेशी पूत
अपना न सहारा
दुःख है साथी।
विदेश का सपना,
मंगलवार, 7 जनवरी 2025
787. तुम्हें जीत जाना है
तुम्हें जीत जाना है
***
उस चक्रव्यूह में समाने का समय आ गया है
जिसमें जाने के रास्तों का पता नहीं
न बाहर निकलने का पता होता है
इस चक्रव्यूह में तय, कब कोई रास्ता होता है?
यह वह समय है, जब हर पल समझ से परे हो जाता है।
जीवन कभी आसमान की परिधि में महसूस करता है
तो कभी आसमान से धरती पर पटक दिया जाता है
जिस समय को अपना समझते हैं
उसके द्वारा पूरा-का-पूरा वजूद झटक दिया जाता है
उल्लास से मन भीग रहा होता है
तभी दुश्चिंताओं की काली छाया दिखेगी
हर स्वप्न अधूरा-सा लगेगा
जीवन अर्थहीन-सा लगेगा
सपनों का सुन्दर संसार सामने होगा
मगर ज़िम्मेदारियों से मन घबराएगा
पथ तो चुन लिया, मगर सफल न होने की सम्भावना
सोचे-विचारे रास्ते, अँधेरे से घिरे दिखेंगे
न ठहरने का ठौर होगा, न रास्तों के सिरे दिखेंगे।
राह उचित है या अनुचित
यह अपनी-अपनी तरह से सब सोचते हैं
मगर जहाँ पहुँच गए, वहाँ से न रास्ते
न पथिक लौटते हैं।
यह वह समय है जब निर्णय पर सन्देह नहीं
सम्भव है चुनाव ग़लत हो जाए
मन टूट जाए
पर हौसला टूटने नहीं देना है
मंज़िल इसी पर कहीं होगी
रास्ता छूटने नहीं देना है
मन जो चाहे वह करना है
काँटे तो मिलेंगे ही यही मानकर यही जानकार
चिन्तन-मनन के बाद भी सफ़र न सुहाए
तो थमकर-सोचकर नई राह तलाशना है
दुःख को हार नहीं, हौसले में बदलना है
एक-न-एक दिन वह समय अवश्य आएगा
जब स्वयं पर गर्व होगा
स्वाभिमान से परिपूर्ण जीवन होगा
कठिनाइयों पर विजय होगी
हार नहीं, साथ में बस साहस होगा
हर सवाल का सामने जवाब होगा
और उस दिन फिर से ज़िन्दगी का हिसाब होगा।
जीवन सुन्दर है, सुन्दरता से सँवारना है
हर नए दिन को आनन्दमय बनाना है
जीवन से पलों का एक रिश्ता है, वह रिश्ता निभाना है
बुधवार, 1 जनवरी 2025
786. नव वर्ष (20 हाइकु)
1.
मन में आस-
नव वर्ष की भोर
हो पुनर्जन्म।
लेकर आशा
नव वर्ष है आया
शुभ सन्देश।
3.
उँगली थामे
नव वर्ष की भोर
घूमने चली।
4.
चहकती है
नव वर्ष की भोर
ख़ूब है शोर।
5.
ठिठुरन है
पर मन में जोश
पहली तिथि
नव वर्ष की भोर
ठण्ड से काँपी।
जश्न की रात
स्वागत में संसार
नवीन वर्ष।
8.
धुँध में आई
नव वर्ष की भोर
मन विभोर।
दुःख को भूलें
नव वर्ष का दिन
स्वागत करें।
नवीन वर्ष
उमंग पसारने
फिर से आया।
पिछला वर्ष
बना है इतिहास
याद आएगा।
12.
नूतन वर्ष
धक्का देके भगाया
पुराना वर्ष।
साल पुराना
बन गया अतीत,
नया आएगा।
14.
स्मृति छोड़के
चुपचाप गुज़रा
साल पुराना।
नव वर्ष को थामे
वक़्त पर आई।
16.
सन्देशा लाया-
वक़्त के साथ चलो,
नवीन वर्ष।
छुड़ाके लौटा
नए साल का हाथ
पिछला साल।
18.
याद दिलाता
वक़्त का बदलाव
नूतन वर्ष।
19.
बिछड़ गया
सुख-दुःख का साथी
पिछला साल।
20.
नूतन वर्ष,
वक़्त दोहराएगा
काल का क्रम।
गुरुवार, 26 दिसंबर 2024
785. सपने जो मेरे हैं (5 माहिया)
सपने जो मेरे हैं
जितने सपने थे
ख़्वाबों को भरकर
चाँदी का रथ गुज़रा।
नाता तोड़ गया
उसकी है मनमर्ज़ी।
महके इठलाए
जीवन ज्यों बचपन में।
मंगलवार, 24 दिसंबर 2024
784. सूरज किसका चाँद किसका
सूरज किसका चाँद किसका
***
हम भी तनहा, तुम भी तनहा
संसार में हम दोनों तनहा
पर साथ-साथ हम चलते हैं
अपना कर्त्तव्य निभाते हैं।
सारे दिन जलकर
जब तुम सोने जाते हो
तुमसे लेकर उजाला
हम देते हैं जग को उजाला
बस एक रात होती है
हमारे मिलन की रात
वह है अमावस की रात
हाँ! यह भी बहुत है
हमारे अनन्त जीवन में
हर माह होती है हमारी रात।
कभी-कभी मन सोचता है
मिली ऐसी ज़िन्दगी क्यों
पिया हमने अमृत क्यों
युगों-युगों से चलते हुए
हर रोज़ जलते हुए
क्या पाएँगे हम
कब तक यूँ जलेंगे हम
उफ़ ये क्या कर लिया हमने
अमरत्व का वरदान
अब लगता है अभिशाप।
हम दोनों अपने पथ पर
बिना थके चलते दम भर
करते रहे कर्त्तव्य का पालन
नहीं किया कोई उल्लंघन
पर जग की रीत देखकर
मन चाहता छोड़ दें सब बन्धन।
कोई कहता सूरज है उसका
कोई कहता चाँद है उसका
नहीं पूछता कोई हमसे
क्या इच्छा है हमारे मन में
युगों-युगों से हम साथ रहे
युगों-युगों तक यों ही रहेंगे
मन दुखता है सुनकर
जग हँसता जब हमें बाँटकर।
अब चाहते आ जाए प्रलय
जग में नहीं रहा कोई लय
या मिल जाए विष कहीं
या उगल दें अमृत सभी
कर विषपान हम करें विश्राम
या अमरत्व का मिटे विधान।
सूरज बिना मिट जाएगी दुनिया
अँधेरे में कब तक टिकेगी दुनिया
फिर बाँटते रहना जगवालों
सूरज था किसका
गुरुवार, 12 दिसंबर 2024
783. पैरहन (5 क्षणिका)
हथेली में सिर्फ़ सुख की लकीरें थीं
कब किसने दुःख की लकीरें उकेर दीं
जो ज़िन्दगी की लकीर से भी लम्बी हो गई
अब उम्मीद की वह पतली डोर भी टूट गई
जिसे सँजोए रखती थी तमाम झंझावतों में
और हथेली की लकीरों में तलाशती थी।
इस पार या उस पार
***
शब्दों का कब तक दूँ हिसाब
सवालों से घिरी मैं
अब नहीं चाहती जवाब
सिर पर लिए हुए सारे सवालों का उ
चुपचाप गुम हो जाना चाहती हूँ
संसार के इस पार या उस पार।
3.
रिश्ते बेजान हुए
कोई चाह अब शेष नहीं
टूटी-फूटी धड़कनें बेहाल हुईं
खण्ड-खण्ड में टूटा दिल, साँसें बेजार हुईं
सपनों के भँवर-जाल की सन्नाटों से बात हुईं
सब छूटा, सब बिखरा, जीने की ख़त्म राह हुई।
मैंने ख़ुद को पहन रखा है सदियों से
ज़िन्दगी पैरहन है, जो अब बोझ लगती है
अब तो बे-आवाज़ ये पैरहन छूटे
मैं बे-लिबास हो जाऊँ
मैं आज़ाद हो जाऊँ।
मौसम का बदलना
नियत समय पर होता है
पर मन का मौसम
क्षणभर में बदलता है
यह बदलाव
कोई क्यों नहीं समझता है?
बुधवार, 20 नवंबर 2024
782. ज़िन्दगी
ज़िन्दगी
बिना सोचे-समझे
किधर मुड़े?
कौन बताए दिशा
मंज़िल मिले जहाँ।
2.
मिलती क्यों ज़िन्दगी
बेइख़्तियार,
डोर जिसने थामे
उड़ने से वो रोके।
3.
ऐ ठहरी ज़िन्दगी!
किसका रस्ता
तू देखे है निगोड़ी
तू है तन्हा अकेली।
4.
खिली महकती है
ज़िन्दगी प्यारी
जीना तो है जीभर
यह सारी उमर।
5.
ज़िन्दगी की ये लड़ी
ख़ुशबू फैली,
मन होता बावरा
ख़ुशी जब मिलती।
6.
ज़िन्दगी की सुबह
शाम सुहानी,
मन नाचे बारहा
सौग़ात जब मिली।
7.
नहीं है पहचानी
राह जो चली,
ज़िन्दगी अनजानी
पर नहीं कहानी।
शनिवार, 16 नवंबर 2024
781. आग मुझे खल रही है
आग मुझे खल रही है
एक आग में तमाम उम्र
जलती, तपती, झुलसती रही
आह निकले, पर सब्र किया
ज़ख़्म दुःखे, पर हँस दिया
आसमाँ से वर्षा की गुहार लगाई
उसने आग बरसाई
हवा से नमी उधार माँगी
उसने लावा की तपिश भेजी
धूप से छाँव की गुज़ारिश की
उसने आग धरती पर उतारी
उम्र से कुछ सुखद पलों की याचना की
न जाने क्यों अब ये सब चुप हैं
मेरी चाहतें तंग हैं या
मेरी तक़दीर की मुझसे जंग है
सुलग रही हूँ, दहक रही हूँ
अग्नि धीरे-धीरे बुझ रही हूँ
मेरी ज़िन्दगी अब भी जल रही है
शुक्रवार, 18 अक्टूबर 2024
780. कुछ ताँका (28 ताँका)
बच्चे
माँ-बाबा को पुकारे
वो नौनिहाल,
बोली सुन-सुनके
माँ-बाबा हैं निहाल।
3.
तूफ़ान साथ जाए
जाते जब वे स्कूल।
4.
बच्चे की किलकारी
माँ जाती वारी
नित सुबह-शाम
बिना लिए विराम।
5.
होता बड़ा उधम,
ढेरों हैं बच्चे
संयुक्त परिवार
रौशन घर-बार।
6.
व्यस्त रहती सदा
काम का टीला
7.
बच्चों की चिन्ता,
प्रकृति की रचना
-0-
बेटियाँ
1.
खेले आँख-मिचौली,
माँ-बाबा हँसे
देखे थे जो सपने
हुए वे सब पूरे।
2.
अम्मा छोड़ जो चली
हो गई बड़ी,
अब बिटिया नन्हीं
सबकी अम्मा बनी।
3.
माँ-बाबा की दुलारी
होती है बेटी,
जाए पिया के घर
कर सूना आँगन।
4.
होती सब बिटिया,
माँ-बाबा रोए
विदा हुई बिटिया
जाए पी के अँगना।
5.
देती सब बेटियाँ
दरो-दीवार,
जाएँ कहीं, सृजन
करती हैं बेटियाँ।
6.
रहती घबराई
बेटी जो जन्मी,
किस घर वो जाए
हर सुख वो पाए।
7.
करती हैं बेटियाँ
जहाँ भी जाए,
मायका होता सूना
-0-
ईश्वर
1.
नाथ सिर्फ़ तुम्हारी
तू बिसराया
सुध न ली हमारी
क्यों समझा पराया?
2.
तू क्यों न समझता
जग की पीर,
आस जब से टूटा
सब हुए अधीर।
3.
जो मेरी पतवार
देखे संसार,
भव सागर पार
पहुँचूँ तेरे पास।
4.
कुछ करो निदान
हो जाऊँ पार
जीवन है सागर
कोई न खेवनहार।
5.
डगर अँधियारा
अब मैं हारी,
तू है पालनहारा
फैला दे उजियारा।
6.
साथ देना ईश्वर
दुर्गम पथ
चल-चलके हारी
7.
तू जग का निर्माता
पालनहारा,
सुन ले, हे ईश्वर!
तेरे भक्तों की व्यथा।
-0-
कृष्ण
1.
तू ही है परमात्मा
कर विचार,
तेरी जोगन हारी
मेरे कृष्ण मुरारी।
2.
हर स्त्री की कहानी
बनी द्रौपदी,
कृष्ण! लो अवतार
करो स्त्री का उद्धार।
3.
करते सीनाजोरी
कृष्ण कन्हाई,
डाँटे यशोदा मैया
फिर करे बड़ाई।
4.
बस यही है धर्म
तेरा सन्देश,
फ़ैल रहा अधर्म
आके दो उपदेश।
5.
की मुझसे ढिठाई,
ओ मोरे कान्हा!
गोपियों संग रास
मुझे माना पराई।
6.
सबको भरमाया
नन्हा मोहन,
देके गीता का ज्ञान
किया जग-कल्याण।
7.
तुझमें ही समाई,
बड़ी बावरी
सहके सब पीर
बनी मीरा दीवानी।
रविवार, 25 अगस्त 2024
779. तुम (10 क्षणिका)
मन में उमंग हो
साथ अगर तुम हो
खिल जाती है मुसकान
नाचता-गाता है आसमान
आप कहें, कभी तुम कहें
कभी जी, कभी जी हुज़ूर
ऐसी ग़ज़ब की यारी अपनी
राधा-कृष्ण-सी है मशहूर।
उतरकर मेरी हथेली पर आ बैठी
यूँ मानो, हो तुम्हारी हथेली।
तुम थे हम थे
चाय की दो प्याली
बातें अपनी, कुछ ज़माने की
और खिलखिलाती शाम थी
फिर मिलेंगे कहकर चल दी
मन का फ़ासला तुमने न मिटाया
आओ एक कोशिश करते हैं
एक उम्र हम चलते हैं
शायद कभी कहीं
रविवार, 30 जून 2024
778. ज़िन्दगी बौनी (10 ताँका)
ज़िन्दगी बौनी
***
दहलीज़ पे
बैठा राह रोकके
औघड़ चाँद
2.
आकाश पे मंज़िल
पहुँचे कैसे?
चारों खाने चित है
मन मेरा मृत है।
3.
सुनसान डगर
किधर चला?
मेरा मन ठहर
थम जा तू इधर।
4.
मानो जादू की छड़ी
छूकर आई
बादलों को प्यार से
ऐसी ठण्डक पाई।
5.
सिरहाने से ख़्वाब
छुपाया तो था
काल की नज़रों से,
चोरी हो गए ख़्वाब।
सब देते हैं दग़ा
नहीं भरोसा,
अपना या पराया
7.
अपने बुने ख़्वाब
मन की कंदराएँ
बेवफ़ा हुईं,
9.
मेरे सपने
मेरी तिजोरी
जिसे छुपाया वर्षों
हो गई चोरी
जहाँ ख़ुशियाँ मेरी
छुपी रही बरसों।
शुक्रवार, 21 जून 2024
777. खण्डहर (10 क्षणिका)
खण्डहर
मन का खण्डहर होना
सिर्फ़ मन के संज्ञान में होता है।
सिर्फ़ समय का नाता है
कभी एक पल लगता है, तो कभी कई जन्म।
नए महलों को मालूम नहीं होता
सबका भविष्य एक ही जैसा है
समय कभी किसी को नहीं बख़्शता है।
शरीर का खण्डहर बनना ज़माना देखता है
पर मन पुख़्ता है, कोई नहीं देखता
शरीर के साथ मन भी तिरस्कृत होता है
साबुत मन उम्र भर, टूटे जिस्म को ढोता है।
कि उसके गौरवशाली इतिहास का कोई साक्षी
उसके ख़ुशहाल अतीत की गवाही दे
और अदालत का फ़ैसला उसको सुनाई दे।
उसके खण्डहर तन में वह ख़ास पल
मृत्योपरान्त भी जीता है
ऐसा लगता है मानो शरीर बीता है
तन खण्डहर हो जाता है
परवाह नहीं कि जीवन कितना, मृत्यु कब
पर एक चाह है, जो जाती नहीं
कोई आए, हाल पूछे, ज़रा बैठे
साथ न दे, साथ का भरोसा ही दे।
खण्डहर में तब्दील होने के गवाहों ने
तमाशा देखा, सुकून पाया
खण्डहर के ख़ज़ानों की बोली लगी है
अब सारे तमाशबीन खण्डहर के मालिक हैं।
खण्डहर बना देता है
किसी भी खण्डहर में एक-न-एक फूल खिल जाता है
मौसम ज़िन्दगी पैदा करता है, पत्थर में साँसे भरता है
उसका प्यार, दुलार, अधिकार था
उसके रिश्तों का आधार था
अगर कभी याद आए तो खण्डहर के अतीत में
अपने दम्भ को याद करने जाता है
इसे मैंने मारा है सोचकर मुस्कुराता है
पर मौसम के लिए खण्डहर भी प्यार है
उसके लिए अब भी एक नक्शा है, एक आकार है।
बुधवार, 12 जून 2024
776. कशमकश
कशमकश
***
मगर आधा भी नहीं समझा है
फ़क़त एक नाते के वास्ते
कितने-कितने फ़रेब सहे
बिना शिकायत बिना कुछ कहे
घुट-घुटकर जीने से बेहतर है
तोड़ दें नाम के वे सभी नाते
जो मुझे बिल्कुल समझ नहीं आते।
बुधवार, 1 मई 2024
775. वक़्त आ गया है
वक़्त आ गया है
***
अक्सर सोचती हूँ
हर बार, बार-बार
मैं चुप क्यों हो जाती हूँ?
जानती हूँ
मेरी चुप्पी हर किसी
पर मुझे भीतर से खोखला कर रही है
अन्दर-ही-अन्दर खा रही है।
मैं अनभिज्ञ नहीं किसी सरोका
स्वयं का हो या संसार का
पर मेरी चुप्पी मुझे धकेल देती
जहाँ मेरे अस्तित्व का सवाल पै
मैं हर बार अपनी खाल में चुपचाप
अपनी चुप्पी से अपनी ही आहुति दे
कोई इससे बाहर नहीं निका
सब छोड़ देते हैं मुझे, मेरी क़ि
पर मैं क्यों ऐसी हूँ?
मन-मस्तिष्क का लावा मुझे जलाता
पर यह आग दिखती क्यों नहीं?
क्यों मैं जलती रहती हूँ?
अंगारों पर चलती रहती हूँ
ख़ुद को आग में जलाती रहती हूँ
सभी के सामने मुस्कुराती रहती हूँ
मेरे जलने-रोने से संसार प्रभा
मैं ही धीरे-धीरे मिटती जाती हूँ
अपने सवाल का जवाब ख़ुद को देती जाती हूँ
जो निरर्थक है और व्यर्थ भी।
मुझे अब अपना जवाब सभी को बताना
अपनी चुप्पी को तोड़ना होगा
हर उस सवाल पर लावा उगलना होगा
जो मुझे मिटाता है, जलाता है
अपनी चुप्पी का एहसास मुझे नहीं
मेरी चुप्पी का अर्थ मुझे जतला
मुझे क्या-क्या कहना है, समझाना
मेरी चुप्पी को ज्वालामुखी में
अन्यथा मैं जलती रहूँगी, लोग जला
मैं मिटती रहूँगी, लोग मिटाते र
अब बस!
चुप्पी को तोड़ने का वक़्त आ गया है
अपने मनमाफ़िक जीने का वक़्त आ ग
संसार से क़दम ताल मिलाने का वक़्त आ गया है।
-जेन्नी शबनम (1.5.2024)
__________________
मंगलवार, 9 अप्रैल 2024
774. नैनों से नीर बहा (19 माहिया)
नैनों से नीर बहा (19 माहिया)
नैनों से नीर बहा
किसने कब जाना
कितना है दर्द सहा।
2.
मन है रूखा-रूखा
यों लगता मानो
सागर हो ज्यों सूखा।
3.
दुनिया खेल दिखाती
माया रचकरके
सुख-दुख से बहलाती।
4.
चल-चल के घबराए
धार समय की ये
किधर बहा ले जाए।
5.
मैं दुख की हूँ बदली
बूँद बनी बरसी
सुख पाने को मचली।
6.
जीवन समझाता है
सुख-दुख है खेला
पर मन घबराता है।
7.
कोई अपना होता
हर लेता पीड़ा
पूरा सपना होता।
8.
फूलों का वर माँगा
माला बन जाऊँ
बस इतना भर माँगा।
9.
तुम कुछ ना मान सके
मैं कितनी बिखरी
तुम कुछ ना जान सके।
10.
कब-कब कितना खोई
क्या करना कहके
कब-कब कितना रोई।
11.
जीवन में उलझन है
साँसें थम जाएँ
केवल इतना मन है।
12.
जब वो पल आएगा
पूरे हों सपने
जीवन ढल जाएगा।
13.
चन्दा उतरा अँगना
मानो तुम आए
बाजे मोरा कँगना।
14.
चाँद उतर आया है
मन यूँ मचल रहा
ज्यों पी घर आया है।
15.
चमक रहा है दिनकर
'दमको मुझ-सा तुम'
मुस्काता है कहकर।
16.
हरदम हँसते रहना
क्या पाया-खोया
जीवन जीकर कहना।
17.
बदली जब-जब बरसे
आँखों का पानी
पी पाने को तरसे।
18.
अपने छल करते हैं
शिकवा क्या करना
हम हर पल मरते हैं।
19.
करते वे मनमानी
कितना सहते हम