मंगलवार, 6 जुलाई 2010

152. एक राह और एक प्याली / ek raah aur ek pyaali

एक राह और एक प्याली

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अभी भी मेरी आँखें 
वहीं खड़ी हैं, वहीं उसी मोड़ पर 
जहाँ से हमारे रास्ते, बदलते हैं हमेशा  

उस दिन भी तो 
साथ ही थे हम, आमने सामने बैठे 
कोल्ड कॉफ़ी की दो प्याली और साथ हमारी चुप्पी,  
हौले से उठाते हम, अपनी-अपनी प्याली 
कहीं शब्द तोड़ न दे प्याली 
या फिर गर्म न हो जाए ज़िन्दगी 
जकड़ न ले हमें हमारे रिश्ते 
पनपने भी न देते कभी मुसकान  

हाथ थाम चल दिए, कॉफ़ी के प्याले भी बदल लिए 
पर नहीं बदल सके फ़ितरत 
और हाथ छुड़ा चल देते, दो अलग-अलग दिशाओं में,
जानते तो हैं कि फिर मिलना है, ऐसे ही चुप्पी को समझना है 
दो कॉफ़ी के प्याले, बदलना भी है और पीना भी है

हर बार एक ही कहानी 
वही ख़ामोश राह, जहाँ से हर बार अलग होना है 
फिर दोबारा मिलने तक 
उसी जगह पर ठहरी रहती है आँखें 
जिस मोड़ से बदलते हैं रास्ते  

कह भी नहीं सकते कि 
इस बार आओ तो साथ ही चलेंगे 
तोड़ देंगे अपनी चुप्पी और दूसरी प्याली 
रहेगी एक राह और एक प्याली,  
छोड़कर जाते हुए, आँखें अब नम न होंगी 
न ठहरी रहेगी उसी मोड़ पर 
जहाँ से हमारे रास्ते, बदलते हैं हमेशा

- जेन्नी शबनम (5. 7. 2010)
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ek raah aur ek pyaali

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abhi bhi meri aankhein 
wahin khadi hain, wahin usi mod par 
jahaan se hamaare raaste, badalte hain hamesha.

us din bhi to 
saath hi the hum, aamne saamne baithe 
cold coffee ki do pyaali aur saath humaari chuppi,  
houle se uthaate hum, apni apni pyaali 
kahin shabd tod na de pyaali 
ya fir garm na ho jaaye zindagi 
jakad na le hamein hamaare rishte 
panapne bhi na dete kabhi muskaan.  

haath thaam chal diye, coffee ke pyaale bhi badal liye 
par nahin badal sake fitarat 
aur haath chhuda chal dete, do alag alag dishaon mein,  
jaante to hain ki fir milna hai, aise hi chuppi ko samajhna hai 
do coffee ke pyaale, badalna bhi hai aur pina bhi hai.

har baar ek hi kahaani 
wahi khaamosh raah, jahaan se har baar alag hona hai 
fir dobaara milne tak 
usi jagah par thahri rahti hain aankhein 
jis mod se badalte hain raaste.  

kah bhi nahin sakte ki 
is baar aao to saath hin chalenge 
tod denge apni chuppi aur dusri pyaali 
rahegi ek raah aur ek pyaali,  
chhod kar jaate hue, aankhein ab nam na hongi 
na thahri rahegi usi mod par 
jahaan se hamaare raaste, badalte hain hamesha. 

- Jenny Shabnam (5. 7. 2010)
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8 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

कह भी नहीं सकते कि
"कह भी नहीं सकते कि
इस बार आओ तो साथ हीं चलेंगे,
तोड़ देंगे अपनी चुप्पी और दूसरी प्याली
रहेगी एक राह और एक प्याली !
छोड़ कर जाते हुए
आँखें अब नम न होंगी,
न ठहरी रहेगी उसी मोड़ पर
जहाँ से हमारे रास्ते
बदलते हैं हमेशा!"

यही होना भी चाहिए - सार्थक और प्रेरक रचना

mai... ratnakar ने कहा…

छोड़ कर जाते हुए
आँखें अब नम न होंगी,
न ठहरी रहेगी उसी मोड़ पर
जहाँ से हमारे रास्ते
बदलते हैं हमेशा !

wov! excellent writting, very touchy also, mazaa aa gaya aur kaafee kuchh beeta yaad aa gaya. thanks

रश्मि प्रभा... ने कहा…

हाथ थाम चल दिए
कॉफ़ी के प्याले भी बदल लिए,
पर नहीं बदल सके फितरत,
और हाथ छुड़ा चल देते
दो अलग अलग दिशाओं में !
जानते तो हैं कि फिर मिलना है
ऐसे हीं चुप्पी को समझना है,
दो कॉफ़ी के प्याले
बदलना भी है और पीना भी है !
bahut hi badhiyaa....

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

दिल कि गहराई में उतर गयी यह रचना...

हौले से उठाते हम
अपनी अपनी प्याली,
कहीं शब्द तोड़ न दे प्याली
या फिर गर्म न हो जाए ज़िन्दगी,
जकड़ न ले हमें हमारे रिश्ते
पनपने भी न देते कभी मुस्कान !

यह पंक्तियाँ विशेष पसंद आयीं

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

हौले से उठाते हम
अपनी अपनी प्याली,
कहीं शब्द तोड़ न दे प्याली
या फिर गर्म न हो जाए ज़िन्दगी,
जकड़ न ले हमें हमारे रिश्ते
पनपने भी न देते कभी मुस्कान !


mujhe bhi ye panktiyan, dil ko chhoo gayee........:)

bahut pyari rachna hai aapki.....
coffee ki do pyali ke saath kaise aapne do logo ko jora hai......srahniya........:)

ज्योत्स्ना पाण्डेय ने कहा…

कह भी नहीं सकते कि
इस बार आओ तो साथ हीं चलेंगे,
तोड़ देंगे अपनी चुप्पी और दूसरी प्याली
रहेगी एक राह और एक प्याली !

बहुत ही गहरी बात....
मिलने और बिछडने के बीच होते झंझावात,
सहजता से करके आत्मसात
प्रस्तुति सुन्दर,शब्दों और भावों की करामात...


शुभकामनाएं....

vandana gupta ने कहा…

बहुत गहरी बात कह दी।

निर्झर'नीर ने कहा…

wowwwwww

exceelent

baat to gahri hai

"कह भी नहीं सकते कि
इस बार आओ तो साथ हीं चलेंगे,