बुधवार, 18 अप्रैल 2018

572. विनती (क्षणिका)

विनती   

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समय की शिला पर   
जाने किस घड़ी लिखी जीवन की इबारत मैंने   
ताउम्र मैं व्याकुल रही और वक़्त तड़प गया   
वक़्त को पकड़ने में 
मेरी मांसपेशियाँ कमज़ोर पड़ गईं   
दूरी बढ़ती गई और वक़्त लड़खड़ा गया   
अब मैं आँखें मूँदे बैठी समय से विनती करती हूँ-   
वक़्त दो या बिन बताए   
सब अपनों की तरह मेरे पास से भाग जाओ।  

- जेन्नी शबनम (18. 4. 2018)
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गुरुवार, 12 अप्रैल 2018

571. बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ (पुस्तक- 69)

बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ  

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वो कहते हैं-   
बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ।   
मेरे भी सपने थे, बेटी को पढ़ाने के   
किसी राजकुमार से ब्याहने के   
पर मेरे सपनों का क़त्ल हुआ   
मेरी दुनिया का अंत हुआ,   
पढ़ने ही तो गई थी मेरी लाडली   
ख़ून से लथपथ सड़क पर पड़ी   
जीवन की भीख माँग रही थी   
और वह राक्षस   
कैसे न पसीजा उसका मन   
उस जैसी उसकी भी तो होगी बहन   
वह भी तो किसी माँ का लाडला होगा   
माँ ने उसे भी अरमानों से पाला होगा   
मेरी दुलारी पर न सही   
अपनी अम्मा पर तो तरस खाता   
अपनी अम्मा के सपनों को तो पालता   
पर उस हवसी हैवान ने, मेरे सपनों का ख़ून किया   
मेरी लाडली को मार दिया   
कहीं कोई सुनवाई नहीं   
पुलिस कचहरी सब उसके   
ईश्वर अल्लाह सब उसके।   
आह! मेरी बच्ची!   
कितनी यातनाओं से गुज़री होगी   
अम्मा-अम्मा चीखती होगी   
समझ भी न पाई होगी   
उसके नाज़ुक अंगों को क्यों   
लहूलुहान किया जा रहा है   
क्षण-क्षण कैसे गुज़रे होंगे   
तड़प-तड़पकर प्राण छूटे होंगे।   
कहते हैं पाप-पुण्य का हिसाब इसी जहाँ में होता है   
किसी दूधमुँही मासूम ने कौन-सा पाप किया होगा  
जो कतरे-कतरे में कुतर दिया जाता है उसका जिस्म 
या कोई अशक्त वृद्धा जो जीवन के अंत के निकट है   
उसके बदन को बस स्त्री देह मान   
चिथड़ों में बदल दिया जाता है।   
बेटियों का यही हश्र है   
स्त्रियों का यही अंत है   
तो बेहतर है बेटियाँ कोख में ही मारी जाएँ    
पृथ्वी से स्त्रियों की जाति लुप्त ही हो जाए।   
ओ पापी कपूतों की अम्मा!   
तेरे बेटे की आँखों में जब हवस दिखा था   
क्यों न फोड़ दी थी उसकी आँखें   
क्यों न काट डाले थे उसके उस अंग को   
जिसे वह औज़ार बनाकर स्त्रियों का वध करता है।   
ओ कानून के रखवाले!   
इन राक्षसों का अंत करो   
सरेआम फाँसी पर लटकाओ   
फिर कहो-   
बेटी बचाओ   
बेटी पढाओ।   

- जेन्नी शबनम (12. 4. 2018)   
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शनिवार, 31 मार्च 2018

570. कैक्टस (पुस्तक - 71)

कैक्टस  

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एक कैक्टस मुझमें भी पनप गया है  
जिसके काँटे चुभते हैं मुझको  
और लहू टपकता है  
चाहती हूँ, हँसू खिलखिलाऊँ  
बिन्दास उड़ती फिरूँ  
पर जब भी, उठती हूँ, चलती हूँ  
उड़ने की चेष्टा करती हूँ  
मेरे पाँव और मेरा मन  
लहूलुहान हो जाता है  
उस कैक्टस से  
जिसे मैंने नहीं उगाया  
बल्कि समाज ने मुझमें जबरन रोपा था  
जब मैं कोख में आई थी  
और मेरी जन्मदात्री  
अपने कैक्टस से लहूलुहान थी  
और उसकी जन्मदात्री अपने कैक्टस से।    
देखो! हम सब का लहू रिस रहा है  
अपने-अपने कैक्टस से।  

- जेन्नी शबनम (31. 3. 2018)  
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रविवार, 18 मार्च 2018

569. ज़िद्दी मन (क्षणिका)

ज़िद्दी मन  

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ज़िद्दी मन ज़िद करता है 
जो नहीं मिलता वही चाहता है  
तारों से भी दूर मंज़िल ढूँढता है  
यायावर-सा भटकता है  
ज़ीस्त में जंग ही जंग पर सुकून की बाट जोहता है  
ये मेरा ज़िद्दी मन अल्फ़ाज़ का बंदी मन  
ख़ामोशी ओढ़के जग को ख़ुदा हाफ़िज़ कहता है  
पर्वत-सी ज़िद ठाने, कतरा-कतरा ढहता है  
पल-पल मरता है, पर जीने की ज़िद करता है।  

- जेन्नी शबनम (18. 3. 2018)  
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गुरुवार, 8 मार्च 2018

568. पायदान (क्षणिका)

पायदान  

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सीढ़ी की पहली पायदान हूँ मैं  
जिसपर चढ़कर समय ने छलाँग मारी  
और चढ़ गया आसमान पर  
मैं ठिठककर तब से खड़ी  
काल-चक्र को बदलते देख रही हूँ,  
न जिरह न कोई बात कहना चाहती हूँ  
न हक़ की, न ईमान की, न तब की, न अब की।  
शायद यही प्रारब्ध है मेरा  
मैं, सीढ़ी की पहली पायदान।  

- जेन्नी शबनम (8. 3. 2018)  
(महिला दिवस)
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मंगलवार, 30 जनवरी 2018

567. मरघट (क्षणिका)

मरघट  

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रिश्तों के मरघट में चिता है नातों की  
जीवन के संग्राम में दौड़ है साँसों की  
कब कौन बढ़े कब कौन थमे  
कोलाहल बढ़ते फ़सादों की  
ऐ उम्र! अब चली भी जाओ  
बदल न पाओगी दास्ताँ जीवन की।  

- जेन्नी शबनम (30. 1. 2018)  
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गुरुवार, 18 जनवरी 2018

566. अँधेरा (क्षणिका)

अँधेरा 

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उम्र की माचिस में ख़ुशियों की तीलियाँ  
एक रोज़ सारी जल गईं, डिबिया ख़ाली हो गई  
मैं आधे पायदान पर खड़ी होकर  
हर रोज़ ख़ाली डिब्बी में तीलियाँ ढूँढती रही  
दीये और भी जलाने होंगे, जाने क्यों सोचती रही?  
भ्रम में जीने की आदत गई नहीं  
हर शब मन्नत माँगती रही, तीलियाँ तलाशती रही  
पर डिब्बी ख़ाली ही रही, ज़िन्दगी निबटती-मिटती रही  
जो दीये न जले, फिर जले ही नहीं  
उम्र की सीढ़ियों पे अब अँधेरा है।

- जेन्नी शबनम (18. 1. 2018)  
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रविवार, 7 जनवरी 2018

565. धरातल

धरातल 
 
***  

ग़ैरों की दास्ताँ क्यों सुनूँ?  
अपनी राह क्यों न बनाऊँ?  
जो पसन्द, बस वही क्यों न करूँ?  
दूसरों के कहे से जीवन क्यों जीऊँ?  
मुमकिन है, ऐसे कई सवाल कौंधते हों तुममें  
मुमकिन है, इनके जवाब भी हों तुम्हारे पास  
जो तुम्हारी नज़रों में सटीक हैं   
और सदैव जायज़ भी।
  
परन्तु सवाल एक जगह ठहरकर  
अपने जवाब तलाश नहीं कर सकते  
न ही सवाल-जवाब के इर्द-गिर्द के अँधेरे   
रोशनी को पनाह देते हैं। 
 
मुमकिन है, मेरी तय राहें तुम्हें व्यर्थ लगती हों  
मेरे जिए हुए सारे अनुभव  
तुम्हारे हिसाब से मेरी असफलता हो  
मेरी राहों पर बिछे फूल व काँटे  
मेरी विफलता सिद्ध करते हों 
परन्तु कई सच हैं  
जिन्हें तुम्हें समझना होगा  
उन्हीं राहों से तुम्हें भी गुज़रना होगा  
जिन राहों पर चलकर मैंने मात खाई है  
उन फूलों को चुनने की ख़्वाहिश तुम्हें भी होगी  
जिन फूलों की ख़्वाहिश में मुझे  
सदैव काँटों की चुभन मिली है  
उन ख़्वाबों की फ़ेहरिस्त बनाना तुम्हें भी भाएगा  
जिन ख़्वाबों की लम्बी फ़ेहरिस्त  
अपूर्ण रही और आजीवन मेरी नींदों को डराती रही।
  
दूसरों की जानी-पहचानी दिशाओं पर चलना  
व्यर्थ महसूस होता है  
दूसरों के अनुभव से जानना  
सन्देह पैदा करता है। 
 
परन्तु राह आसान हो   
सपने पल जाएँ और जीवन सहज हो  
तुम सुन लो वह सारी दास्तान  
जो मेरे जीवन की कहानी है  
ताकि राह में तुम अटको नहीं, भटको नहीं  
सपने ठिठकें नहीं, जीवन सिमटे नहीं। 

दूसरों के प्रश्न और उत्तर से  
ख़ुद के लिए उपयुक्त प्रश्न और उत्तर बनाओ  
ताकि धरातल पर जीवन की सुगन्ध फैले  
और तुम्हारा जीवन परिपूर्ण हो। 
 
जान लो  
सपने और जीवन  
यथार्थ के धरातल पर ही सफल होते हैं। 

-जेन्नी शबनम (7.1.2018)
(पुत्री के 18वें जन्मदिन पर)
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गुरुवार, 28 दिसंबर 2017

564. हाइकु काव्य (हाइकु पर 10 हाइकु) पुस्तक 95, 96

हाइकु काव्य  
 
*******  

1.  
मन के भाव  
छटा जो बिखेरते  
हाइकु होते।  

2.  
चंद अक्षर  
सम्पूर्ण गाथा गहे  
हाइकु प्यारे।  

3.  
वृहत् सौन्दर्य  
मन में घुमड़ता,  
हाइकु जन्मा।  

4.  
हाइकु ज्ञान-  
लघुता में जीवन,  
सम्पूर्ण बने।  

5.  
भारत आया  
जापान में था जन्मा  
हाइकु काव्य।  

6.  
हाइकु आया  
उछलता छौने-सा  
मन में बसा।  

7.  
दिखे रूमानी  
करे न मनमानी  
नन्हा हाइकु।  

8.  
चंद लफ़्ज़ों में  
अभिव्यक्ति संपूर्ण  
हाइकु पूर्ण।  

9.  
मेरे हाइकु  
मुझसे बतियाते  
कथा सुनाते।  

10.  
हाइकु आया  
दुनिया समझाने  
हमको भाया।  

- जेन्नी शबनम (10. 12. 2017)  
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गुरुवार, 16 नवंबर 2017

563. यक़ीन (क्षणिका)

यक़ीन

*******  
 
मुझे यक़ीन है  
एक दिन बंद दरवाज़ों से निकलेगी 
सुबह की किरणों का आवभगत करेगी 
रात की चाँदनी में नहाएगी, कोई धुन गुनगुनाएगी 
सारे अल्फ़ाज़ को घर में बंद करके 
सपनों की अनुभूतियों से लिपटी 
ज़िन्दगी मुस्कुराती हुई बेपरवाह घूमेगी  
हाँ! मुझे यक़ीन है, ज़िन्दगी फिर से जिएगी। 

- जेन्नी शबनम (16. 11. 2017) 
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मंगलवार, 14 नवंबर 2017

562. फ़्लाइओवर

फ़्लाइओवर 

***  

एक उम्र नहीं, एक रिश्ता नहीं  
कई किस्तों में, कई हिस्सों में  
बीत जाता है जीवन  
किसी फ़्लाइओवर के नीचे  
प्लास्टिक के कनात के अन्दर  
एक सम्पूर्ण एहसास के साथ। 

गुलाब का गुच्छा, सस्ती किताब, सस्ते खिलौने  
जिन पर उनका हक़ होना था  
बेच रहे पेट की ख़ातिर
काग़ज़ और कपड़े के तिरंगे झण्डे   
आज बेचते, कल कूड़े से उठाते  
मस्तमौला, तरह-तरह के करतब दिखाते  
और भी जाने क्या-क्या है  
जीवन गुज़ारने का उनका ज़रीया। 
 
आज यहाँ, कल वहाँ  
पूरी गृहस्थी चलती है  
इस यायावरी में फूल भी खिलते  
वृक्ष वृद्ध भी होते हैं  
जाने कैसे प्रेम पनपते हैं। 
 
वहीं खाना, वहीं थूकना  
बदबू से मतली नहीं  
ग़ज़ब के जीवट, गज़ब का ठहराव  
जो है, उतने में ख़ुश  
कोई सोग नहीं, कोई बैर नहीं  
जो जीवन उससे संतुष्ट  
और ज़्यादा की चाह नहीं 
आखिर क्यों?  
न अधिकार चाहिए, न सुधार चाहिए। 
  
बस यों ही  
पुश्त-दर-पुश्त  
खम्भे की ओट में  
कूड़े के ढेर के पास  
फ़्लाइओवर के नीचे  
देश का भविष्य तय करता है  
जीवन का सफ़र।  

-जेन्नी शबनम (14.11.2017)  
(बाल दिवस)
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मंगलवार, 24 अक्टूबर 2017

561. दीयों की पाँत (दिवाली के 10 हाइकु) पुस्तक- 94,95

दीयों की पाँत 

***  

1.  
तम हरता  
उजियारा फैलाता  
मन का दीया   

2.  
जाग्रत हुई  
रोशनी में नहाई  
दिवाली-रात   

3.  
साँसें बेचैन,  
पटाखों को भगाओ  
दीप जलाओ   

4.  
पशु व पक्षी  
थर-थर काँपते,  
पटाखे यम   

5.  
फिर से आई  
ख़ुशियों की दीवाली  
हर्षित मन   

6.  
दीवाली रात  
दीयों से डरकर  
जा छुपा चाँद   

7.  
अँधेरी रात  
कर रही विलाप,  
दीयों की ताप   

8.  
सूना है घर,  
बैरन ये दीवाली  
मुँह चिढ़ाती   

9.  
चाँद जा छुपा  
सूरज जो गुस्साया  
दीवाली रात   

10.  
झुमती रात  
तारों की बरसात  
दीयों की पाँत   

-जेन्नी शबनम (19.10.2017)  
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शनिवार, 7 अक्टूबर 2017

560. महाशाप

महाशाप  

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किसी ऋषि ने  
जाने किस युग में  
किस रोष में दे दिया होगा
सूरज को महाशाप
नियमित, अनवरत, बेशर्त  
जलते रहने का  
दूसरों को उजाला देने का,  
बेचारा सूरज  
अवश्य होत होगा निढाल  
थककर बैठने का  
करता होगा प्रयास  
बिना जले बस कुछ पल रुके  
उसका मन बहुत बहुत चाहता होगा   
पर शापमुक्त होने का उपाय  
ऋषि से बताया न होगा,  
युग बीते, सदी बदली   
पर वह फ़र्ज़ से नही भटका  
 कभी अटका  
हमें जीवन और ज्योति दे रहा है  
अपना शाप जी रहा है।  
कभी-कभी किसी का शाप  
दूसरों का जीवन होता है।  

- जेन्नी शबनम (7. 10. 2017)  
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रविवार, 17 सितंबर 2017

559. कैसी ज़िन्दगी? (10 ताँका)

कैसी ज़िन्दगी?    

***  

1.  
हाल बेहाल  
मन में है मलाल  
कैसी ज़िन्दगी?  
जहाँ धूप न छाँव  
न तो अपना गाँव।   

2.  
ज़िन्दगी होती  
हरसिंगार फूल,  
रात खिलती  
सुबह झर जाती,  
ज़िन्दगी फूल होती।   

3.  
बोझिल मन  
भीड़ भरा जंगल  
ज़िन्दगी गुम,  
है छटपटाहट  
सर्वत्र कोलाहल। 

4.  
दीवार गूँगी  
सारा भेद जानती,  
कैसे सुनाती?  
ज़िन्दगी है तमाशा  
दीवार जाने भाषा। 

5.  
कैसी पहेली?  
ज़िन्दगी बीत रही  
बिना सहेली,  
कभी-कभी डरती  
ख़ामोशियाँ डरातीं।   

6.  
चलती रही  
उबड-खाबड़ में  
हठी ज़िन्दगी,  
ख़ुद में ही उलझी  
निराली ये ज़िन्दगी।  

7.  
फुफकारती  
नाग बन डराती  
बाधाएँ सभी,  
मगर रूकी नहीं,  
डरी नहीं, ज़िन्दगी।  

8.  
थम भी जाओ,  
ज़िन्दगी झुँझलाती  
और कितना?  
कोई मंज़िल नहीं  
फिर सफ़र कैसा?  

9.  
कैसा ये फ़र्ज़   
निभाती है ज़िन्दगी  
साँसों का क़र्ज़,  
ग़ुस्साती है ज़िन्दगी  
जाने कैसा मरज़।   

10.  
चीख़ती रही  
बिलबिलाती रही  
ज़िन्दगी ख़त्म,  
लहू बिखरा पड़ा  
बलि पे जश्न मना।   

-जेन्नी शबनम (17.9.2017) 
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शुक्रवार, 8 सितंबर 2017

558. हिसाब-किताब के रिश्ते (तुकांत)

हिसाब-किताब के रिश्ते  

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दिल की बातों में ये हिसाब-किताब के रिश्ते  
परखते रहे कसौटी पर बेकाम के रिश्ते 

वक़्त के छलावे में जो ज़िन्दगी ने चाह की  
कतरा-कतरा बिखर गए ये मखमल-से रिश्ते   

दर्द की दीवारों पे हसीन लम्हे टँके थे  
गुलाब संग काँटों के ये बेमेल-से रिश्ते   

लड़खड़ाकर गिरते फिर थम-थम के उठते रहे  
जैसे समंदर की लहरें व साहिल के रिश्ते   

नाम की ख़्वाहिश ने जाने ये क्या कराया  
गुमनाम सही पर क्यों बदनाम हुए ये रिश्ते   

चाँदी के तारों से सिले जज़्बात के रिश्ते  
सुबह की ओस व आसमाँ के आँसू के रिश्ते   

किराए के मकाँ में रहके घर को हैं तरसे  
अपनों की आस में 'शब' ने ही निभाए रिश्ते   


- जेन्नी शबनम (8. 9. 2017)  
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शुक्रवार, 1 सितंबर 2017

557. सूरज की पार्टी (11 बाल हाइकु) पुस्तक 93,94

सूरज की पार्टी  

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1.  
आम है आया  
सूरज की पार्टी में  
जश्न मनाया   

2.  
फलों का राजा  
शान से मुस्कुराता  
रंग बिरंगा   

3.  
चुभती गर्मी  
तरबूज़ का रस  
हरता गर्मी   

4.  
खीरा-ककड़ी  
लत्तर पे लटके  
गर्मी के दोस्त   

5.  
आम व लीची  
कौन हैं ज़्यादा मीठे  
करते रार   

6.  
मुस्कुराता है  
कँटीला अनानास  
बहुत ख़ास   

7.  
पानी से भरा  
कठोर नारियल  
बुझाता प्यास   

8.  
पेड़ से गिरा  
जामुन तरोताज़ा  
गर्मी का दोस्त   

9.  
मानो हो गेंद  
पीला-सा ख़रबूजा   
लुढ़का जाता   

10.  
धम्म से कूदा
अँखियाँ मटकाता  
आम का जोड़ा   

11.  
आम की टोली  
झुरमुट में छुपी  
गप्पें हाँकती

- जेन्नी शबनम (27. 8. 2017)  
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रविवार, 27 अगस्त 2017

556. बादल राजा (बरसात पर 10 हाइकु) पुस्तक 92, 93

बादल राजा   

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1.  
ओ मेघ राजा  
अब तो बरस जा  
भगा दे गर्मी   

2.  
बदली रानी  
झूम-झूम बरसी  
नाचती गाती   

3.  
हे वर्षा रानी  
क्यों करे मनमानी  
बरसा पानी   

4.  
नहीं बरसा  
दहाड़ता गरजा,  
बादल शेर   

5.  
काला बदरा  
मारा-मारा फिरता  
ठौर न पाता  

6.  
मेघ गरजा  
रवि भागके छुपा  
डर जो गया   

7.  
खिली धरती,  
रिमझिम बरसा  
बदरी काली   

8.  
ली अँगड़ाई  
सावन घटा छाई  
धरा मुस्काई   

9.  
बरसा नहीं  
मेघ को गुस्सा आया,  
क्रूर प्रकृति   

10.  
सुन्दर छवि  
आकाश पे उभरा  
मेघों ने रचा   

- जेन्नी शबनम (27. 8. 2017)  
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